अदृश्य जो शिव है वह दृश्य प्रपंच (लिंग ) का मूल है . इससे शिव को अलिंग कहते हैं और अव्यक्त प्रकृति को लिंग कहा गया है . इसलिए यह दृश्य जगत भी शैव यानी शिवस्वरूप है . प्रकृति और प्रधान को ही उत्तमोलिंग कहते हैं। वह वर्ण , गंध , रस हीन है और शब्द , स्पर्श , रूप आदि से रहित है परन्तु शिव अगुणी , ध्रुव और अक्षय हैं। उनमें गंध , रस , वर्ण तथा शब्द , स्पर्श आदि लक्षण हैं। जगत आदि कारण , पंचभूत स्थूल और सूक्ष्म शरीर जगत का स्वरुप सभी अलिंग शिव से ही उत्पन्न होता है।
यह संसार पहले सात प्रकार से , आठ प्रकार से और ग्यारह प्रकार से उत्पन्न होता है। तीनो देवता ( ब्रह्मा , विष्णु , रूद्र ) शिव रूप ही हैं। उनमें वे एक स्वरुप से उत्पत्ति , दुसरे से पालन और तीसरे से संहार करते हैं। अतः उनको शिव का ही स्वरुप जानना चाहिए। ब्रह्म रूप ही जगत है और अलिंग स्वरुप स्वयं इसके बीज बोने वाले हैं तथा वही परमेश्वर हैं। क्योंकि योनी ( प्रकृति ) और बीज तो निर्जीव हैं यानी व्यर्थ हैं। किन्तु शिव ही इसके असली बीज हैं। बीज और योनि में आत्मा रूप शिव ही हैं।
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