Thursday 4 October 2012

YOG DARSHAN- 1

1. अथ योगनुशाशनम।।
- अब योग विषयक शाश्त्र का आरम्भ करते हैं।

2. योगाश्र चित वृति निरोधः।।
- चित की वृतियों का सर्वथा रुक जाना अथवा नियंत्रित हो जाना योग है।

3. तदा दृष्टुः   स्वरूपे अवास्थानम।।
- उस समय देखने वाले का अपने स्वरुप में अवस्थान हो जाता है ( स्थिति हो जाती है )

4. वृति सारूप्यम इतरत्र।।
- वृतियों के सामान रूप वाला दूसरी अवस्था में प्रतीत होता है।

5. वृतयः पंचतय्यः क्लिष्टा  अक्लिष्टाः।।
- वृतियां पांच तरह की हैं जो दुःख की उत्पादक और दुःख का नाश करने वाली हैं।

6. प्रमाण विपर्यय विकल्प निद्रा स्म्रतयः।।
- प्रमाण विपर्यय विकल्प निद्रा और स्मृति ये पांच वृतियां हैं।

7. प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि।।
- प्रत्यक्ष , अनुमान , आगम ( शाश्त्र ) प्रमाण हैं।

8. विपर्ययो मिथ्याज्ञानम अत्द्रुपष्ठितम।।
- जो उस पदार्थ के रूप में प्रतिष्ठित नहीं है इस प्रकार का झूठा ज्ञान विपर्यय है।

9. शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः।।
- जो शब्द और ज्ञान  के  अनुसार उभरती हो, ऐसी वृति जो विषयगत वस्तु  शून्य हो विकल्प कहलाती है।

10. अभावप्रत्ययालाम्बना वृतिनिद्राः।।
- जो वृति अभाव के ज्ञान का अवलम्बन करने वाली है वह निद्रा कहलाती है। 

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