Thursday 1 November 2012

विष्णु पुराण : अंश -1: अध्याय -2

जो पर ( प्रकृति ) से भी पर , परमश्रेष्ठ , अंतरात्मा में स्थित परमात्मा, रूप , वर्ण, नाम, और विशेषण आदि से  रहित  हैं। जिनमें जन्म , वृद्धि, परिणाम, क्षय और नाश इन छह विकारों का सर्वथा अभाव है।जिनको सर्वथा केवल है इतना ही कह सकते हैं। जिनके लिए यह प्रसिद्ध है की वो सर्वत्र हैं और सारा विश्व उनमें ही बसा हुआ है इसलिए ही विद्वान् जिनको वासुदेव कहते हैं वही नित्य , अजन्मा, अक्षय , अव्यय , एकरस और हेय गुणों के अभाव के कारण निर्मल परब्रह्म हैं। ( 10- 13)
वही इन सब व्यक्त ( कार्य ) और अव्यक्त ( कारण)   जगत के रूप से तथा इसके साक्षी पुरुष और महाकारण काल के रूप से स्थित हैं। (14)
परब्रह्म का प्रथम रूप पुरुष है अव्यक्त ( प्रकृति ) और व्यक्त (महदादि )  उसके अन्य रूप हैं और काल उसका परम रूप है। (15)
जो प्रधान , पुरुष , व्यक्त और काल इन चारों से परे हैं वही भगवान् विष्णु का परमपद है। (16)
प्रधान , पुरुष , व्यक्त और काल ये भगवान् विष्णु के रूप पृथक पृथक संसार की उत्पत्ति पालन और संहार के प्रकाश और उत्पादन में कारण हैं। (16)